कुछ सीख बेटे के लिए भी ताकि हर बेटी सुरक्षित रहे।

राधिका बेटे के होने पर बहुत खुश थी।
प्रसव पीड़ा के वक़्त वो बस यही सोच रही थी -" भगवान बेटा ही देना , बेटी तो इस दुनिया में ; मां के गर्भ में भी सुरक्षित नहीं है।
उसे प्रसव की पीड़ा से ज्यादा, बेटी के होने का डर सता रहा था।
तभी डॉक्टर ने बोला -" आप लंबी सांसे लीजिए, आपका ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ रहा है, इस तरह तो हमे ऑपरेशन करना पड़ेगा । बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही है।"
राधिका ने खुद को संभाला और जैसे तैसे डिलीवरी हो ही गई।
राधिका ने पूछा -" डॉक्टर बेटा है या बेटी ।"

डॉक्टर -" राधिका बेटा हो या बेटी , मां को तो 9 महीने दोनो को ही रखना पड़ता है गर्भ में, उतनी ही प्रसव पीड़ा भी सहनी पड़ती है; फिर एक मां के लिए बेटा - बेटी में क्या अंतर? "

राधिका -" डॉक्टर !! मां के लिए तो सब बराबर है, पर ये दुनिया  बेटियों कि दुश्मन है।
बेटियों को पढ़ाई लिखाई कराओ , कदम कदम पर बैठे भेड़ियों से बचाओ। वहां से बच गई तो फिर ससुराल अच्छा ना मिला तो जीवन भर का दुख !!
मै बस इन बातों से डर रही हूं, बेटी से नहीं।"

डॉक्टर -" राधिका!! ये तो परवरिश का खोट है, वरना वो भेड़िए भी होते तो किसी के बेटे ही हैं। ससुराल में ले जाने वाला पति भी किसी का बेटा ही होता है।

बेटियां तभी सुरक्षित होंगी ; जब मां बाप बेटियों की जगह बेटों को सीख और नसीहत देकर बड़ा करना शुरू करेंगे।"
 
खैर! तुम्हे बधाई हो ! तुम्हे बेटा ही हुआ है, अब इसे तुम ऐसी सीख देना  ताकि कोई और राधिका बेटी पैदा करने से ना डरे!
राधिका  प्रसव पीड़ा को भूल , डॉक्टर की बातें सुनकर सुन्न हो गई। उसे लगा मैने ये तो सोचा ही नहीं।

एक बेटी की मां बनने से बड़ी जिम्मेदारी है एक बेटे की मां होना।

बेटियों को सिखाने के लिए तो कदम कदम , हर नुक्कड़ गली में, बैठी औरतें, घर की चाची - ताई, बुआ - मौसी, स्कूल की टीचर, समाज के ठेकेदार हैं।

पर बेटों को सिखाने वाला कौन है। उनके लिए कोई नियम नहीं है , जैसे बेटियों के लिए है
?
राधिका इस ख्याल में डूबी ही थी कि अंदर नर्स अाई - " बेटा हुआ है, मै अलग से बधाई लूंगी।"

राधिका की सास ने उसी वक़्त पोते पर से वार कर बधाई नर्स को दी।

घर आकर बच्चे की तगड़ी पहनाने की रस्म हुईं। एक पड़ोस कि दादी ने बोला -"अरे , ये तगड़ी तो लड़कों का वस्त्र होती है , फिर चाहे बालकपन में बच्चा लंगोट पहने या ना पहने।

सारी औरतें दादी की बात सुनकर ठहाके लगाकर हंसने लगी।
राधिका हड़बड़ाई और उसने बच्चे को पजामी पहना दी -" नहीं दादी!! अगर हम लड़कियों को बचपन से लाज - शर्म सिखाते हैं तो इसे भी सीखनी पड़ेगी।"

सब राधिका की बेचैनी को देखकर हैरान थे, पर उसके दिल में उठे विचारों के तूफान को शांत करने वाला या समझने वाला कोई ना था।

जैसे जैसे बेटा बड़ा हो रहा था , राधिका की चिंता बढ़ती जा रही थी ।
बेटा पैदा करना ही बस मां बाप का फर्ज नहीं है, बेटे को   समाज में रहने के नियम सीखना, सबको बराबरी की नजरों से देखना, सबका सम्मान , घर से बाहर जाकर कैसा व्यवहार करना है; ये सब भी सीखना मां बाप की ही जिम्मेदारी है।

राधिका का बेटा जैसे धीरे धीरे बड़ा होता रहा , राधिका उसे  हर जरूरी सीख देती रही।

राधिका की सास ने बोला -" बहू ! तुम क्या इस लड़के को हर वक़्त लड़कियों की तरह सीख देती रहती हो। जरा, इसे भी गली के लड़कों में खेल कूद करने दो।
अपने पास बिठा बिठा कर इसे बुजदिल बना दोगी।"

राधिका -" मां जी , जरूरी थोड़ी है कि सीख लड़कियों को ही दी जाए। अगर लड़के को भी सिखाया जाए, तो किसी लड़की के मां बाप को चिंता ना हो बेटी के होने पर।"
राधिका की सास -" पता नहीं , तुम कौनसी किताब पढ़कर अाई हो ? हमारे तो बेटे जैसे पैदल चलना शुरू हुए, तबसे आज तक तो मां के पास बैठे नहीं । तुमने ही सारी दुनिया से अलग बेटा पैदा किया है जो हर वक़्त इसे शिक्षा देती रहती हो।"

राधिका का बेटा ज्योही बारहवीं पास करके कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था तो राधिका ने बोला -" आओ बेटा!! अब तुम उम्र की उस दहलीज पर पहुंच गए हो, जब तुम अपने फैसले खुद लेना सीखोगे।
मै चाहती हूं तुम खूब अच्छा नाम कमाओ, अपने सपने पूरा करो। बस अपनी मां की ये चंद सीख याद रखना, तो मै समझूंगी मेरा जीवन सफल हो गया। वरना मेरा मरना - जीना एक समान है।"

बेटा -" बोलो मां, तुमसे बेहतर गुरु कौन मिलेगा मुझे । जो  इस दुनिया में लाई , वो मेरे भले की ही बात कहेगी।"

राधिका -" तो सुनो बेटा !! -
      अपने आपको एक मर्द नहीं, एक इंसान बनाना तुम,
किसी की बेटी का ना कभी दिल दुखाना तुम।
औरत भी है बराबरी की हकदार, ये सबको बतलाना तुम।
औरत का अपमान करके, मेरा दूध ना लजाना तुम।
कोई रास्ता बदल ले तुम्हे देखकर,ऐसा कुछ ना कर जाना तुम,
एक मजबूत मां ने तुम्हे पाला है, ये साबित करके दिखाना तुम।
खुद को बनाना एक बेहतर इंसान, मेरी सीख को ना भूल जाना तुम।"
राधिका ये कहकर रो पड़ी। बरसों से जो तूफान उसके मन में था, अब उसे शांत करने वाला  मिल गया।

बेटे ने मां को गले से लगाया, और वादा किया -" मां तुम्हारी तपस्या को मैं यूंही बर्बाद नहीं होने दूंगा।"

राधिका जो डर रही थी अब उसे थोड़ा चैन आया।

हमारा समाज जो ये समझ ले की कुछ सीख बेटे को भी दी जाए, तो किसी की बेटी असुरक्षित नहीं होगी।

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