दिव्य + अंग (दिव्यांग )नहीं, समाज + अंग (समाजांग) समझें

विकल + अंग (विकलांग) से दिव्य + अंग ( दिव्यांग) तो बना दिया पर किसी ने भी समाज + अंग ( समाज अंग) बनाने पर शायद ध्यान नहीं दिया।
एक कहावत है -
                   जिसके पांव ना फटी बवाई, वो क्या जाने पिर परायी।
ये कहावत सटीक बैठती है आज के हालात पर।
कोरोना वायरस की वजह से दोस्त , रिश्तेदार सब एक दूसरे से किनारा कर बैठे हैं।
छींक भी आ जाए तो भीड़ की नजरें ऐसे घूरती है जैसे मौत को पास से गुजरते देखा हो किसी ने।
सब तरफ गर्दन झुका के भी पीछे से इशारे करते लोग साफ दिखाई देते हैं।
गली पड़ोस भी देखते ही दरवाजे ऐसे बंद कर लेते हैं जैसे कोई उधार मांगने आया हो।
इसी सब के चलते आज आधे लोग अवसाद में है । तरह तरह के योगा,काढ़े,चिंतन,पूजा पाठ किए जा रहे हैं।
ये स्थिति तो कुछ समय बाद ठीक हो जाएगी।
फिर से दरवाजे  पर पड़ोसी के बच्चे खेलेंगे, पड़ोस की बूढ़ी चाची फौज से आए बेटे के खत को पढ़वाने आयेगी। रिश्तेदार भी त्योहार पर तोहफे का इंतजार करेंगे।
पर उनका क्या जिनसे समाज से हमेशा के लिए  किनारा कर लिया?? हमेशा के लिए उनके लिए अपनी सोच के दरवाजे बंद कर लिए हैं।
हां मै बात कर रही हूं उन्ही दिव्यांगो की जिन्हें कभी समाज का अंग नहीं समझा गया पूरी तरह से।
वो तो इस समाज के दोगलेपन को जीवनभर झेलते हैं।
कुछ हिम्मत करके समाज की आंखो में आंखें डालकर देखते भी है तो सिवाय बंद दरवाजों के कुछ नहीं मिलता।
सरकार के किए हुए  वादे , दी हुई सुविधा ऐसी है जैसे गेहूं के ढेर में सुई खोजना। 
ये अवसाद भरा जीवन क्यू?
वो भी देश के नागरिक हैं उन्हें भी पूरा अधिकार है ।
फिर कुछ समझ के ठेकेदार सिर्फ भाषण तक ही क्यू सीमित रखते हैं उन्हें।
कुछ लोगों को बात अजीब लगेगी पर वो ज़रा नजर घुमा कर खुद देख ले कितने  बस स्टैंड, रेलवे स्टेंड, शौचालय,सरकारी दफ्तर सब बैरियर फ्री बन गए हैं?
अजी इतनी लंबी बातें जाने दीजिए।
ये ऑनलाइन क्लासेज को ही देख लीजिए कितने स्कूल सिर्फ ट्यूशन फीस में दिव्यांग बच्चों को पढ़ाई उपलब्ध करा रहे हैं?
कितने स्कूल उन्हें बिना एक्स्ट्रा फीस लिए उनका दाखिला ले रहे है?
कहने को तो सब हो रहा है देश में पर पता नहीं मेरी दिव्य शक्ति को क्या हो गया है जो दिव्यांग के लिए दी हुई सुविधा मुझे दिख नहीं रही। 
कहीं मैंने मास्क आंखों पर तो नहीं लगा लिया??
काश समाज के लोग अब तो समझ पाते कैसा लगता है खुद को किसी और की वजह से चारदीवारी में बंद रखना।
शिक्षा रूपी ज्योति भी नहीं पहुंच पा रही ।
ये अंधेरा कब दूर होगा? ये स्थिति कब सुधरेगी?
दिव्यांग से समाज का अंग बनने का सफर कितना लंबा है?


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